भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास, महत्व तथा निबंध। The flag of India-Tiranga | history, Importance and essay || Independence day 2022
The Flag of India – Tiranga : राष्ट्रीय ध्वज किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की पहचान तथा उस राष्ट्र की संप्रभुता का प्रतीक होता है। यह राष्ट्र की स्वाधीनता का प्रतीक भी होता है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज हर भारतवासी का गौरव है। यह मात्र एक आयताकार कपड़े का टुकड़ा नहीं बल्कि देश की आन बान और शान है और इसकी गरिमा बनाए रखने के लिए भारत का हर नागरिक कृत संकल्पित है। किसी भी राष्ट्र की स्वाधीनता का आकलन उसके देश में लहराते हुए राष्ट्रीय ध्वज से किया जा सकता है। आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी हिंद के शेरों ने कभी इसकी गरिमा को कम नहीं होने दिया। आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था-
“राष्ट्रीय ध्वज सिर्फ हमारी स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह देश की समस्त जनता की स्वतंत्रता का प्रतीक है।”
मामूली सी खादी की कपड़ों से बना तिरंगा ( Tiranga ) आजादी के दीवानों के नसों में सौर्य और ताकत कूट-कूट कर भर देता है। इसी तिरंगे की शान के लिए हमने कई लड़ाइयां लड़ी और कभी इसे झुकने नहीं दिया। जिस तिरंगे के लिए हमारे देश के वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी, आज मैं आप लोगों को उसी राष्ट्रीय ध्वज ( The Flag of India – Tiranga ) से संबंधित वे सारी बातें बताऊंगा जिसे आप जानना चाहते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (Indian National Flag-Tiranga)
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज “तिरंगा” ( Tiranga ) के नाम से जाना जाता है। तिरंगा यानी कि 3 रंगों का समूह। महान देशभक्त और कृषि वैज्ञानिक “पिंगली वेंकैया” द्वारा इसे डिजाइन किया गया था। वे आंध्र प्रदेश के रहने वाले थे। तीन प्रकार के रंगों की सहायता से इसे सजाया गया है। यह देश की खादी के कपड़े से बना होता है। इस कपड़े को हाथ से कातकर बनाया जाता है।
कानून के अनुसार राष्ट्रीय झंडा खादी का ही बना होना चाहिए। तीनों रंग आयताकार बराबर भागों में बंटे होते हैं। जिसमें सबसे ऊपर केसरिया ( गहरा ), बीच में सफेद और सबसे नीचे हरा रंग होता है। ध्वज के बीचो बीच एक नीले रंग का अशोक चक्र बना हुआ है जिसमें कुल 24 तिलियां लगी हुई है। इसकी लंबाई और चौड़ाई का अनुपात क्रमशः 3:2 है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप इन काल खंडों में कई बार बदला। मौजूदा स्वरूप को 22 जुलाई 1947 इसवी को भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान सर्वसम्मति से अपनाया गया। राष्ट्रीय ध्वज का मौजूदा स्वरूप को आज हम हर राष्ट्रीय पर्व के उपलक्ष्य में फहराते हैं। इस ध्वज को 26 जनवरी वर्ष 1950 ईस्वी को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया।
प्रारंभ में राष्ट्रीय ध्वज Tiranga को सिर्फ राष्ट्रीय त्योहार जैसे स्वतंत्रता दिवस तथा गणतंत्र दिवस को ही फहराने की संवैधानिक अनुमति थी। बाकी अन्य दिनों में इसे कोई भी फहरा नहीं सकता था। बाद में भारतीय झंडा संहिता 2002 के अनुसार यूनियन केबिनेट की एक मीटिंग के बाद इसमें संशोधन कर आम नागरिकों के लिए भी इसे फहराने की अनुमति दी गई।
हमारे लिए राष्ट्रीय ध्वज किसी अमूल्य धरोहर से कम नहीं है। इसको लहराता देख हर भारतीय का सीना 56 इंच का हो जाता है। इसके निर्माण और डिजाइन का कार्य भारतीय स्टैंडर्ड ब्यूरो के देखरेख में होता है जबकि खादी के कपड़े के निर्माण का अधिकार विकास एवं ग्रामीण उद्योग कमीशन को दिया गया है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज और उनके रंगों का अर्थ (Tiranga and Their Colours)
विश्व का सबसे खूबसूरत झंडा और भारत की आन बान और शान Tiranga 3 रंगो से बना होता है। वास्तव में तीन रंगों से बने होने के कारण ही इसे तिरंगा कहा जाता है। तीन रंगों से बने तिरंगा में तीनों कलर की पट्टियां आयताकार, समतलीय एवं बराबर हिस्सों में बंटे होते हैं। सबसे ऊपर केसरिया बीच में सफेद पट्टी तथा सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी होती है।
तीनों रंगो के बीचो बीच एक नीले रंग का चक्र होता है जिसमें 24 तिलिया होती है। राष्ट्रीय ध्वज की लंबाई तथा चौड़ाई का अनुपात क्रमशः 3:2 होता है। स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में इस ध्वज को 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। विश्व का सबसे बड़ा और खूबसूरत लोकतंत्र भारत का है।
धर्मनिरपेक्ष राज्य होने के बावजूद भारत के सभी नागरिक खुशी-खुशी एक ही झंडे के नीचे रहते हैं। सभी धर्मों के लोग चाहे वह हिंदू हो, मुसलमान हो सीख हो या फिर ईसाई हो, यह राष्ट्रीय ध्वज हमें एकता के सूत्र में बांधकर रखता है। बहुत सोच समझ कर राष्ट्रध्वज के निर्माताओं ने इसे तैयार किया है। इसमें मौजूद सभी रंग अपने आप में कुछ कहता है।
इसमें लगे धर्म चक्र भी हमें कुछ सिखाता है, तो चलिए इन सबके बारे में विस्तार से जानते हैं-
केसरिया रंग ( Saffron )
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की सबसे ऊपर की पट्टी केसरिया रंग की होती है, जो साहस, निस्वार्थता, शक्ति और बलिदान का प्रतीक होता है। यह राष्ट्र के प्रति हिम्मत और निस्वार्थ भावनाओं को दर्शाता है। यह रंग कुछ धर्मों जैसे हिंदू बौद्ध और जैन आदि के लिए धार्मिक महत्व रखता है।
यह रंग अहंकार को त्याग कर शालीनता लाने का संदेश भी देता है। यह रंग एकता का भी प्रतीक है। यह आध्यात्म तथा उर्जा का भी प्रतीक है अतः हिंदू, बौद्ध तथा जैन समुदाय के लोग इसे अपने काफी करीब मानते हैं। वास्तव में संतरे का रंग केसरिया होता है और यह रंग हिंदू धर्म की निशानी है।
भारत के ऋषि मुनियों या ब्राह्मणों की मुख्य पोशाक केसरिया रंग की होती है जिसका अलग ही महत्व है। हिंदू ग्रंथों में पूजा अर्चना के वक्त केसरी रंग के वस्त्र पहनने की मान्यता है। यह रंग शुभ होता है क्योंकि यह अग्नि का प्रतीक है। हवन में अग्नि के जरिए परमात्मा का आवाहन किया जाता है। अतः इस रंग का अध्यात्म के साथ सीधा संबंध है।
सफेद रंग ( White )
राष्ट्रीय ध्वज में बीच की पट्टी सफेद रंग की होती है जो राष्ट्र की शांति, सद्भाव, शुद्धता, सच्चाई और इमानदारी को प्रदर्शित करता है। सफेद रंग को स्वच्छता और ज्ञान का भी प्रतीक माना जाता है। यह भारतीय दर्शनशास्त्र में उल्लेखित है।
यह रंग हमें सच्चाई और मार्गदर्शन की राह पर हमेशा चलना सिखाती है। कर्तव्य परायण और एक आदर्श व्यक्ति बनने के लिए यह रंग हमें हमेशा प्रेरित करती है। अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा में शांति की स्थिति कायम करने के लिए सांकेतिक रूप से सफेद रंग के झंडे का प्रयोग किया जाता है।
हरा रंग (Green)
राष्ट्रीय ध्वज में सबसे नीचे की पट्टी हरे रंग की होती है जो विश्वास, उर्वरता, खुशहाली, समृद्धि और प्रगति को दर्शाता है। भारतीय दर्शनशास्त्र में हरे रंग को खुशहाली और उत्सव के साथ भी जोड़ा जाता है। यह देश की हरी-भरी भूमि, पहाड़-पर्वत तथा हरियाली को दर्शाता है। यह रंग आंखों को सुकून देने वाला होता है।
प्रकृति के साथ इस रंग का घनिष्ठ संबंध है। विज्ञान के अनुसार किसी भी बीमार व्यक्ति को हरे भरे पेड़-पौधों और बाग बगीचों के बीच रखने से उनकी बीमारी 50% तक कम हो जाती है। यह रंग लोगों को अवसाद से भी दूर रखता है। फेंगशुई पद्धति में इस रंग को स्वास्थ्य विकास और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
अशोक चक्र और उसमें लगी तिलियां क्या कहती है?
अशोक चक्र मुख्य रूप से सारनाथ में लगे अशोक स्तंभ से लिया गया है। अशोक चक्र राष्ट्रीय ध्वज में सफेद पट्टी के बीचों-बीच लगभग उसी के व्यास के बराबर गोल होता है। इसे धर्म चक्र या समय चक्र भी कहा जाता है। इसके बीचो बीच 24 तिलियां लगी होती है जो दिन के 24 मूल्यवान घंटे को इंगित करता है। इसे कर्तव्य का पहिया भी कहा जाता है।
इसके अलावा उन में लगे 24 तीलियां मनुष्य के 24 गुणों को प्रदर्शित करती है। इन गुणों को आत्मसात कर लोग उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं। यह देश को स्वर्णिम भविष्य की ओर ले जाने की संकेत देती है। हमारे राष्ट्रध्वज निर्माताओं ने इसका फाइनल रूप देने से पहले चरखे की जगह अशोक चक्र रखा यह हमें निरंतर आगे बढ़ने के संकेत देती है। इसमें लगी प्रत्येक तीली कुछ न कुछ कहती है। आइए उन सभी तीलियों के बारे में एक-एक करके उसका मतलब जानते हैं-
क्रम संख्या | प्रेरणा | विस्तार से |
---|---|---|
पहली तीली | संयम | संयमित जीवन जीने तथा भाषा की मर्यादा की प्रेरणा |
दूसरी तीली | आरोग्य | निरोगी जीवन जीने तथा स्वस्थ रहने की प्रेरणा |
तीसरी तीली | शांति | देश में शांति व्यवस्था और भाईचारा रखने की प्रेरणा |
चौथी तीली | त्याग | देश के लिए त्याग करने की शिक्षा |
पांचवी तीली | शील | स्वभाव में शालीनता की शिक्षा |
छठी तीली | सेवा | घर परिवार तथा समाज और देश की सेवा की शिक्षा |
सातवीं तीली | क्षमा | मनुष्य तथा जीवो के प्रति क्षमा की भावना |
आठवीं तीली | प्रेम | देश और समाज के प्रति प्रेम भावना प्रकट करने की शिक्षा |
नवमी नौवीं क्लासतीली | मैत्री | समाज के प्रति मैत्री की भावना प्रकट करने की शिक्षा |
दसवीं तीली | बंधुत्व | हमें समाज और देश के प्रति प्रेम तथा बंधुत्व की भावना |
ग्यारह दसवीं तीली | संगठन | संगठित रहकर राष्ट्र की एकता तथा अखंडता को मजबूत रखने की भावना |
बारहवीं तीली | कल्याण | देश तथा समाज के लिए कल्याणकारी कार्य करने की प्रेरणा |
तेरहवीं तीली | समृद्धि | देश एवं समाज की समृद्धि में योगदान देने की प्रेरणा |
चौदहवीं तीली | उद्योग | देश की औद्योगिक प्रगति में सहायता करने की प्रेरणा |
पंद्रहवीं तीली | सुरक्षा | देश की सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहने की प्रेरणा |
सोलहवीं तीली | नियम | निजी जिंदगी में नियम और संयम से बर्ताव करना |
सतरहवीं तीली | क्षमता | समतामूलक समाज की स्थापना करना |
अट्ठारहवीं तीली | अर्थ | आर्थिक रूप से धन का सदुपयोग करना |
ऊन्नीसवीं तीली | नीति | देश की नीति के प्रति निष्ठा और समर्पण की प्रेरणा |
बीसवीं तीली | न्याय | सभी के लिए न्याय की बात करना |
इक्कीसवीं तीली | सहकार्य | आपस में मिलजुल कर कार्य करने की प्रेरणा |
बाइसवीं तीली | कर्तव्य | कर्तव्यों को ईमानदारी से पालन करना |
तेईसवीं तीली | अधिकार | अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करने की प्रेरणा |
चौबीसवीं तीली | बुद्धिमता | देश की समृद्धि के लिए स्वयं का बौद्धिक विकास करने की प्रेरणा |
इस प्रकार से इसमें लगी हर एक तिलियां देश और समाज की संपूर्ण विकास की बात करती है। यह हमें जाति धर्म और बंधनों को भूल कर एक रहने की प्रेरणा देती है। यह हमें एकता के धागे में पिरो कर संगठित रहने की प्रेरणा देती है। अतः हमें धर्म चक्र की प्रेरणा से देश को एक समृद्धि शिखर तक ले जाने का सतत प्रयास करना चाहिए।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास (Indian National Flag-Tiranga History)
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज ( Tiranga ) का इतिहास बहुत पुराना है।
राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश की स्वतंत्रता का प्रतीक होता है। तिरंगे का नूतन स्वरूप जो आज हम देख रहे हैं, इसे कई बार परिवर्तित करके बनाया गया है। इसे वास्तविक स्वरूप में आने में लगभग 90 वर्ष का समय लगा।
इसके बाद भारत की संविधान सभा के बैठक में इसे 22 जुलाई वर्ष 1947 को सर्वसम्मति से अपनाया गया। जब ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों को सत्ता सौंपी गई उससे कुछ महीनों पहले भारतीय कृषि वैज्ञानिक और महान देशभक्त पिंगली वेंकैया ने इसे डिजाइन किया।
पिंगली वेंकैया ने बहुत सोच समझ कर इसे डिजाइन किया। इसमें प्रत्येक रंगों का अलग ही महत्व है। यह हमें एकता का संदेश देती है। तिरंगे का वास्तविक रूप जो आप अभी देख रहे हैं इसके इस रूप में आने के पीछे इतिहास में कहीं कहानियां वर्णित है। आइए उन कहानियों को एक-एक करके देखते हैं-
तिरंगे झंडे का इतिहास एवं क्रमिक विकास (History of Tiranga Jhanda)
1904 में निर्मित राष्ट्रीय ध्वज : भारतीय राष्ट्रीय ध्वज Tiranga का इतिहास भारत की स्वतंत्रता के पहले से ही जुड़ा है। भारत देश का प्रथम ध्वज वर्ष 1904 में बनाया गया था। वर्ष 1906 में यह लोगों के सामने आया। इसका डिजाइन स्वामी विवेकानंद की परम शिष्या सिस्टर निवेदिता ने किया था। उस जमाने में इस ध्वज को सिस्टर निवेदिता ध्वज के नाम से जाना जाता था।
यह ध्वज लाल, पीला और सफेद रंग का उपयोग कर बनाया गया था। इसमें लाल रंग आजादी की लड़ाई, पीला रंग जीत तथा सफेद रंग स्वच्छता का प्रतीक था। बांग्ला भाषा में वंदे मातरम लिखा यह झंडा भगवान इंद्र से प्रेरित था। इस झंडे में भगवान इंद्र से संबंधित अस्त्र शस्त्र जैसे वज्र, सेफ कमल का चित्र इत्यादि बना हुआ था। यहां पर वज्र ताकत और कमल पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
1906 में निर्मित राष्ट्रीय ध्वज : वर्ष 1906 में इस झंडे का स्वरूप बदला गया। इस ध्वज में लाल पीला के अलावा सफेद की जगह हरे रंग ने ले लिया। इसमें तीन आयताकार क्षैतिज पट्टीयों का इस्तेमाल किया गया था। इसमें सबसे ऊपर हरे रंग की पट्टी, बीच में पीले रंग की पट्टी तथा सबसे नीचे लाल रंग की पट्टी बनी हुई थी।
सबसे ऊपर हरे रंग की पट्टी में आठ कमल के पुष्प के चित्र बने हुए थे। जबकि सबसे नीचे लाल रंग की पट्टी में अर्धचंद्राकार तथा सूर्य के चित्र बने हुए थे। बीच में पीली पट्टी के स्थान पर बीचोबीच हिंदी में वंदे मातरम लिखा हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार यह राष्ट्रीय ध्वज कोलकाता के ग्रीन पार्क में 7 अगस्त वर्ष 1906 ईस्वी को फहराया गया था।
1907 में निर्मित राष्ट्रीय ध्वज : मैडम भीकाजी कामा, विनायक दामोदर सावरकर तथा श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा वर्ष 1907 में इस झंडे का स्वरूप फिर से बदला गया। इस झंडे का निर्माण हरा पीला के अलावा लाल के स्थान पर नारंगी रंग के पट्टी से किया गया। जहां पर नारंगी सबसे ऊपर हरा सबसे नीचे तथा पीला पट्टी बीच में था।
नारंगी सौर्य और साहस का प्रतीक है। ऊपर की नारंगी पट्टी में एक कमल तथा सात सितारे का चित्र बना हुआ था। बीच के पीले पट्टी में देवनागरी लिपि में बंदे मातरम लिखा हुआ था। सबसे नीचे हरे पट्टी में अर्धचंद्राकार और सूर्य का चित्र बना हुआ था।
यह ध्वज बाकी दो अन्य ध्वजों से कुछ अलग था। इसे मैडम भीकाजी कामा ध्वज के नाम से भी जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार वर्ष 1907 में दूसरी बार यह झंडा मैडम कामा ने अपने कुछ क्रांतिकारी साथियों के साथ इस झंडे को पेरिस में फहराया था और यह पहली बार हुआ जब भारतीय झंडे को देश से बाहर फहराया गया था।
1916 में निर्मित राष्ट्रीय ध्वज : वर्ष 1916 में महान देशभक्त और कृषि वैज्ञानिक पिंगली वेंकैया ने एक ध्वज बनाया। उनका मानना था कि यह पूरे देश में एकता का प्रतीक होगा। इस झंडे में सिर्फ दो ही रंग की पट्टीयां थी। लाल और हरा। उन्होंने महात्मा गांधी से से मिलकर इस ध्वज के बारे में उनसे राय मांगी।
इस पर महात्मा गांधी ने उन्हें इस झंडे में चरखा जोड़ने की सलाह दी। उन्होंने खादी कपड़े से इस ध्वज को बनाया तथा झंडे के बीचो बीच चरखा भी बनाया। बाद में इस ध्वज को गांधी जी ने यह कहकर नकार दिया की इसमें लाल और हरा दो ही रंग है। लाल हिंदुओं का तथा हरा मुसलमानों का प्रतीक है। इसके कारण देश एकजुट नहीं हो पाएगा।
1917 में निर्मित राष्ट्रीय ध्वज : भारत के होम रूल मूवमेंट के दौरान तीसरी बार राष्ट्रीय ध्वज डॉक्टर एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक के द्वारा 1917 में फहराया गया था। इस झंडे का स्वरूप ब्रिटिश झंडे से मिलता जुलता था जिसमें 5 लाल और 4 हरी आड़ी क्षेतीज पट्टीयां थी। सबसे ऊपर बाएं तरफ ब्रिटेन का झंडा और दूसरी ओर चांद और 7 सितारे थे। यह सात सितारे सप्त ऋषि को इंगित करते हैं। यह ध्वज पिछले सभी से अलग था।
1921 में निर्मित राष्ट्रीय ध्वज : महात्मा गांधी ने वर्ष 1921 में पुनः पिंगली वेंकैया को राष्ट्रीय ध्वज बनाने का आग्रह किया। उन्होंने ध्वज को इस तरह से डिजाइन करने के लिए कहा जिसमें सबसे ऊपर सफेद रंग बीच में हरा तथा सबसे नीचे लाल रंग को प्रदर्शित करने के लिए कहा गया। वे चाहते थे कि राष्ट्रीय ध्वज में राष्ट्र की एकजुटता साफ-साफ झलके।
जिसमें हरा रंग मुसलमान, लाल रंग हिंदू और सिख तथा सफेद अल्पसंख्यकों का प्रतीक है। इसके बीचो-बीच चरखा भी जोड़ा गया जहां सभी धर्म के लोगों की एकजुटता को भी दिखाया गया। इसे कांग्रेस पार्टी ने अपनाने से इंकार कर दिया फिर भी यह आंदोलनकारियों के लिए राष्ट्रीय प्रतीक का हिस्सा बना।
1931 में निर्मित राष्ट्रीय ध्वज : 1921 में बने राष्ट्रीय ध्वज सांप्रदायिक व्याख्या की भेंट चढ़ गई। इसलिए इस ध्वज में लाल रंग के स्थान पर गेरुआ रंग किया गया। लेकिन यहां सिख समुदाय को दर्शाने के लिए किसी भी प्रतीक का इस्तेमाल नहीं किया गया। जिस पर सिख समुदाय के लोगों ने कड़ा एतराज जताया। बाद में सिख समुदाय को प्रतीक को प्रकट करने के लिए गेरुआ के स्थान पर केसरिया रंग जोड़ा गया।
1931 में पिंगली वेंकैया ने एक नया ध्वज बनाया जिसमें सबसे ऊपर केसरिया बीच में सफेद तथा सबसे नीचे हरा रंग था। ध्वज के बीचो बीच एक नीले रंग का चरखा था। 1931 के कांग्रेस अधिवेशन में इसे कांग्रेस पार्टी ने पास किया गया तथा इसे अपना आधिकारिक ध्वज बनाया।
1947 में राष्ट्रीय ध्वज को सर्वसम्मति से अपनाया गया।
वर्ष 1947 में आजादी के बाद देश के पहले राष्ट्रपति और कमेटी के प्रमुख डॉ राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रीय ध्वज के बारे में विमर्श के लिए एक सभा बुलाई। वहां सभी ने सहमति के साथ कांग्रेस के आधिकारिक झंडे को बदलाव के साथ राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। जिसमें चरखा की जगह पर अशोक चक्र ने ले ली। इस प्रकार हमारा राष्ट्रीय ध्वज Tiranga बनकर तैयार हुआ।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (Tiranga) का निर्माण तथा मानक
ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड् (BIS) को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का मानक सेट करने का अधिकार दिया गया था। इनके अनुसार निर्माण से संबंधित समुचित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। इसमें कपड़ा कौन सा लगेगा, धागा किस रंग की होनी चाहिए इस का अनुपात क्या होना चाहिए इत्यादि।
यहां तक कि उनके फहराने तथा रखरखाव की सारे अधिकार इन्हीं को दिए गए हैं। जबकि इनके कपड़े की पूरी जिम्मेदारी भारतीय खादी विकास एवं ग्रामीण उद्योग कमीशन को दिया गया है। इनको फहराने तथा ध्वज के अपमान से संबंधित कानूनी धाराएं भी लिखी हुई है। इसकी सारी जानकारी आपको इसके आधिकारिक वेबसाइट में मिल जाएंगे।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का महत्व (Indian National Flag Importance)
राष्ट्रीय ध्वज Tiranga हमारे देश की शान है। हवा में लहराते हुए राष्ट्रीय ध्वज को देखकर हर भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है। हमारा राष्ट्रीय ध्वज देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है। इनके हर रंगों में एक संदेश छुपा है। तिरंगे का यही संदेश हमारे देश को विकास के पथ पर अग्रसर करता है।
आजादी के 75 वर्षों के बाद भी हमारे वीरों ने कभी इस तिरंगे पर कोई आंच तक नहीं आने दी। जहां केसरिया रंग हमारे शरीर में शौर्य और ताकत भरते हैं वही सफेद सच्चाई और स्वच्छता का भी संदेश देते हैं। हरा रंग हमारे देश की मिट्टी से जुड़े हरे भरे पेड़ पौधे, पहाड़ पर्वत, और नदियों की तरह सदाबहार रहने की प्रेरणा देती है।
उसमें लगे नीला चक्र हमें कभी ना रुकने की प्रेरणा देती है। यह तिरंगा हमें स्वतंत्रता का अभिमान करवाता है। धर्मनिरपेक्ष देश के लिए ये गर्व की बात है की हम एक ही तिरंगे के नीचे भाईचारे और सौहार्द के साथ रहते हैं, और इसकी प्रेरणा हमें अपने राष्ट्रीय ध्वज से ही मिलती है। अनवरत लहराने वाले तिरंगे से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय ध्वज का महत्व बहुत अधिक होता है।
भारतीय ध्वज संहिता क्या कहती है?
Indian Flag Code भारतीय ध्वज को फहराने तथा उसे प्रयोग करने से संबंधित दिए गए दिशा निर्देश है। भारतीय झंडा संहिता 2002 में पारित किया गया था। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज Tiranga देश के संपूर्ण लोगों की आस्था और आकांक्षाओं पर आधारित है। यह हमारे देश के गौरव का प्रतीक है। भारतीय ध्वज संहिता 2002 में संपूर्ण राष्ट्र के मार्गदर्शन से नियमों, औपचारिकताओं और दिशानिर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। इसके तहत निम्नलिखित दिशा निर्देश जारी किए गए हैं-
- जब भी ध्वज फहराया जाए एक लंबे बांस या फिर लोहे की पाइप या फिर जो भी हो उसे ऐसी जगह पर लगाया जाए जहां पर्याप्त जगह हो। झंडे को सम्मानपूर्वक स्थान दें। उसे ऐसी जगह लगाएं जहां से तिरंगा स्पष्ट दिखाई देता हो।
- सरकारी भवनों में इसे सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कभी भी पहरा सकते हैं। इसे रविवार अथवा अन्य छुट्टियों के दिनों में भी फहराया जा सकता है। किसी विशेष अवसर के दौरान इसे रात को भी फहराया जा सकता है।
- राष्ट्रीय ध्वज को फहराते वक्त चेहरे पर तेज और स्फूर्ति होना चाहिए। निराशा के भाव में तिरंगे को फहराना नहीं चाहिए। झंडा फहराने के बाद उसे आदर के साथ धीरे धीरे उतारें। तिरंगे को फहराने और उतारने के दौरान बिगुल बजाया जाता है इसीलिए इस पर खास ध्यान रखें।
- जब झंडे को खिड़की, बालकनी या घर के अगले हिस्से में छोटी सी जगह पर फहराया जाए तो ध्वज को बिगुल के साथ ही फहराया और उतारा जाए।
- ध्वज फहराने के बाद अगर कोई सभा या गोष्ठी का आयोजन होता है तो ध्यान रहे अगर वक्ता का मुंह श्रोता के मुंह की और हो तो ध्वज उनके दाहिने और होना चाहिए।
- अगर ध्वज किसी अधिकारी की गाड़ी में लगी हो या कोई आम आदमी अपनी गाड़ी में इसे लगाया हो तो ध्यान रहे यह या तो गाड़ी के सामने बीचोबीच या फिर दाहिने तरफ लगा होना चाहिए।
- अगर ध्वज मैला या गंदा हो चुका है तो कृपया कर इसे अच्छे से धोकर साफ करें उसके बाद ही इसे फहराए। फटा हुआ ध्वज बिल्कुल न फहराए। बल्कि इसको एकांत में पूरा नष्ट किया जाए।
- जब कभी राष्ट्रीय शोक की घोषणा होती है तभी राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका होता है।
- किसी अन्य ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर या समकक्ष नहीं रखा जाना चाहिए। किसी भी अन्य पताका को राष्ट्रीय ध्वज से ऊपर नहीं फहराना चाहिए।
- जब भी राष्ट्रीय ध्वज को फहराया जाए तब ध्यान रहे केसरिया रंग सबसे ऊपर होना चाहिए।
- ध्वज पर कुछ भी लिखा हुआ छपा नहीं होना चाहिए यह ध्वज संहिता का उल्लंघन है।
भारतीय ध्वज संहिता 2002 का संशोधन
प्रारंभ में सभी भारतीय नागरिकों के लिए राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी। इसे केवल सरकारी दफ्तरों अथवा सरकारी भवनों में ही फहराया जाता था। लेकिन बाद में भारतीय झंडा संहिता 2002 के अनुसार यूनियन केबिनेट की एक मीटिंग के बाद इसमें संशोधन कर आम नागरिकों के लिए भी इसे फहराने की अनुमति दी गई।
देश का राष्ट्रीय ध्वज अब रात को भी फहरा सकते हैं गृह मंत्रालय के आदेश से यह प्रस्ताव पास किया गया। लेकिन शर्त यह है की झंडा फहराने वाले पोल वास्तव में ऊंचा हो तथा ध्वज खुद भी चमके।
जहां तक संभव हो राष्ट्रीय ध्वज को सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ही फहराया जाना चाहिए। अगर बड़े भवनों में अथवा स्मारकों में दिन और रात फहराने के लिए पोल की लंबाई 100 फूड या उससे ऊंचा होना चाहिए।
राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी रोचक जानकारियां
- मैडम भीकाजी कामा भारत के पहले ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने विदेशी धरती पर 22 अगस्त 1907 को पहली बार Tiranga फहराया। इसके बाद उन्होंने दूसरी बार अंतरराष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में भारतीय ध्वज फहराया था।
- भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट में 29 मई सन 1953 ईस्वी को फहराया गया था।
- अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा द्वारा वर्ष 1984 में राष्ट्रीय ध्वज को अंतरिक्ष में फहराया गया था।
- वर्ष 2014 में 50 हजार लोगों की भीड़ ने राष्ट्रीय ध्वज बनाकर एक रिकॉर्ड स्थापित किया था।
- दिल्ली के सेंट्रल पार्क में 90 फीट लंबाई तथा 60 फीट चौड़ाई का सबसे बड़ा झंडा फहराया गया है।
एशिया का सबसे ऊंचा झंडा (Tiranga) कहां स्थित है?
एशिया महादेश का सबसे ऊंचा झंडा Tiranga हिंदुस्तान और पाकिस्तान के अटारी बॉर्डर पर फहराया गया है। इसकी ऊंचाई लगभग 460 फीट है। इससे पहले बॉर्डर के जीरो लाइन से 200 मीटर की दूरी पर मौजूद तिरंगे की पोल की ऊंचाई 360 फीट था। जिसे बाद में 100 फीट और ऊंचा बढ़ाया गया।
इस तिरंगे का वजन 55 टन है तथा झंडे की लंबाई 120 फीट तथा चौड़ाई 80 फीट है। हैरत की बात यह है कि इससे पहले पाकिस्तान का झंडा हम से ऊंचा था। बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी के दौरान जब गैलरी से हमारा झंडा Tiranga हमें नहीं दिखाई देता था तब दर्शकों ने इस पर ऐतराज जताया था। जिसके बाद सरकार ने इसकी मंजूरी दे दी। इससे पहले कश्मीर में 100 फुट का ऊंचा तिरंगा फहराया जा चुका है।
हर घर तिरंगा अभियान
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। तिरंगे के प्रति मान सम्मान और आस्था को प्रबल बनाने के लिए 13 से 15 अगस्त 2022 के बीच सभी के घरों में तिरंगा फहराने को लेकर हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है।
सरकार का लक्ष्य स्वतंत्रता दिवस तक 25 करोड घरों में तिरंगा लहराने का है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस कार्य में केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय सभी राज्यों में व्यापक रूप से इसके अभियान में भागीदारी के लिए संपर्क कर रहे हैं।
अभियान के तहत तिरंगा फहराने के नियम में बदलाव किया गया है। इसके लिए कई संगठनों ने व्यापारियों के साथ मिलकर तिरंगे की उपलब्धता को लेकर वार्ता की है। करीब 27 करोड़ तिरंगे की उपलब्धता का लक्ष्य रखा गया है। सभी को राष्ट्रीय ध्वज संहिता को सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया है।
राष्ट्रीय ध्वज (Tiranga) से संबंधित कुछ प्रश्न और उनके उत्तर
पिंगली वेंकैया , आंध्र प्रदेश के रहने वाले
यह साहस, निस्वार्थता, शक्ति और बलिदान का प्रतीक है।
Tiranga का मतलब होता है तीन रंगों से बना।
श्रीमती भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 में हुई जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में सातवीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में पहली बार झंडा फहराया।
तिरंगे में 3 रंग होते हैं केसरिया, सफेद तथा हरा।
22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया तथा स्वीकार किया गया था।
डॉ राजेंद्र प्रसाद झंडा समिति के अध्यक्ष थे।
राष्ट्रीय ध्वज की लंबाई चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है।
7 अगस्त 1986 को कोलकाता में बंगाल विभाजन के विरोध में एक रैली हुई थी इसमें पहली बार तिरंगा प्रदर्शित किया गया था।
हरा रंग विश्वास, उर्वरता, खुशहाली, समृद्धि और प्रगति का प्रतीक है।
सफेद रंग राष्ट्र की शांति, सद्भाव, शुद्धता, सच्चाई और इमानदारी को प्रदर्शित करता है।
यह कर्तव्य की प्रेरणा देती है। साथ ही यह हमें निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
निष्कर्ष
देश की आन बान और शान तिरंगे को देखकर हर किसी का सीना चौड़ा हो जाता है। राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्र की एकता और अखंडता को कभी कमजोर होने नहीं देगी। 15 अगस्त 2022 को हर व्यक्ति तिरंगे को गर्व के साथ अपने घरों में फहराने के लिए तैयार हैं। क्या आप भी तैयार है हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा।
उम्मीद करता हूं भारतीय राष्ट्रीय ध्वज ( The flag of India – Tiranga ) की विशालता एवं ताकत को आप पूरी तरह समझ गए होंगे।
“राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करें क्योंकि यह राष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत है।”
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