विपक्ष में चाहे कोई भी हो चुनाव का मौसम आते ही ईवीएम फ्रॉड का मुद्दा खूब भुनाया जाता है। आज जानते हैं क्या होता है ईवीएम की चोरी करना और क्या वाकई ऐसा हो सकता है।

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जिस प्रकार हमारी मोटरसाइकिल या कार का एक ही नंबर होता है वैसे ही हर एक ईवीएम का भी नंबर पूरे देश में एक ही होता है। ईवीएम का निर्माण भेल कंपनी की ओर से किया जाता है।

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इसको बनाने से लेकर रखरखाव तक की पूरी व्यवस्था ऐसी है कि इसे बदलना या चुराना किसी रिजर्व बैंक को लूटने से भी ज्यादा कठिन है।

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एक ईवीएम (EVM) में अधिकतम 64 उम्मीदवारों के नामों को ही अंकित किया जा सकता है और एक मशीन में अधिकतम 3840 वोट ही दर्ज किए जा सकते हैं।

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अगर किसी चुनाव क्षेत्र में 64 से अधिक उम्मीदवार होते हैं तो ऐसी स्थिति में आज भी पारंपरिक तरीके से यानी कि मतपत्र से चुनाव होता है।

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राज्य से दूसरे राज्य और जिले से दूसरे जिले को जब ईवीएम भेजा जाता है तो उसका नंबर भारत निर्वाचन आयोग के पास रिकॉर्ड होता है।

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जिला मुख्यालय में ईवीएम आने के बाद राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में भेल के इंजीनियर तकनीकी जांच करते हैं। जांच में खराब पाई जाने वाली ईवीएम भेल के वेयरहाउस में चली जाती है।

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इसके बाद भारत निर्वाचन आयोग की तरफ से प्रतिनियुक्त ऑब्जर्वर सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, डीएम तथा संबंधित निर्वाचन अधिकारी की उपस्थिति में ईवीएम का फर्स्ट रेडमाइजेशन किया जाता है।

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रेडमाइजेशन यानी की तार के पत्तों की तरह ईवीएम को मिलाना जिससे उसको अलग से पहचाना ना जा सके, की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

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इसके बाद स्ट्रांग रूम में ईवीएम को स्टॉक कर रख दिया जाता है। चुनाव से 72 घंटे पहले एक बार फिर उक्त सभी प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें से 10 परसेंट रिजर्व रखा जाता है।

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रेडमाइजेशन के दौरान राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ प्रत्याशियों के एजेंट, ऑब्जर्वर, निर्वाचन अधिकारी, डीएम, केंद्रीय अर्धसैनिक बल की उपस्थिति में मजिस्ट्रेट को पोलिंग के लिए ईवीएम दिया जाता है।

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किस नंबर का ईवीएम किस बूथ पर गया है इसकी सूची प्रत्याशियों के एजेंट को भी उपलब्ध कराई जाती है। इसकी कॉपी ऑब्जर्वर के माध्यम से चुनाव आयोग तक भेजी जाती है।

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सुरक्षाबलों की निगरानी में मजिस्ट्रेट बुध तक ईवीएम पहुंचाते हैं। किस EVM में कितना वोट पड़ रहा है इसका रिकॉर्ड पीठासीन अधिकारी के माध्यम से पोलिंग एजेंट के साथ साथ आब्जर्वर तक को उपलब्ध कराया जाता है।

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पोलिंग के बाद सुरक्षाबलों की निगरानी में स्टैटिक मजिस्ट्रेट स्ट्रांग रूम में ईवीएम जमा करवाते हैं। स्ट्रांग रूम में ईवीएम नंबर के आधार पर प्रत्येक ईवीएम के लिए अलग-अलग खाचा तैयार रहता है।

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नंबर के आधार पर उसी खाचा में ईवीएम को सुरक्षित रखा जाता है। स्ट्रांग रूम की सुरक्षा 4 लेयर में होती है। सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को होती है। स्ट्रांग रूम को सील कर रखा जाता है।

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अब कई स्ट्रांग रूम में सीसीटीवी भी लगाया जा रहा है मतगणना के दिन स्ट्रांग रूम का सील ऑब्जर्वर की उपस्थिति में ही तोड़ा जाता है। काउंटिंग के लिए पूर्व से निर्धारित क्रमवार खाचा से ईवीएम निकाला जाता है।

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EVM का नंबर तथा उस में डाले गए कुल मत का मिलान प्रत्याशियों के काउंटिंग एजेंट के समक्ष किया जाता है। सुरक्षा के इतने चैनल पार करने के बाद भी कोई EVM बदल सकता है या चोरी कर सकता है यह संभव नहीं है।

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जानकारी अच्छी लगी तो लोगों के साथ शेयर कर उनका भ्रम दूर करें। ईवीएम के बनने से लेकर वितरण तक की पूरी जानकारी के लिए पढ़ें-